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शुक्रवार, 14 सितंबर 2007

वक़्त

वक्त ज़ख्म, वक्त ही दवा देता है
जिन्दा है जो उन्हें जीने कि सजा देता है

झुलस रहे हैं सदियों से कई जिस्म जिन्दगी कि आग में
बुझते शोलों को वक्त आ आके हवा देता है

जो होते शूल फूलों के खिलाफ तो जिस्म छिल जाते तितलियों के
अपनों से वाफाई का सिला वक़्त सिखा देता है।

वक़्त वो वक़्त है कि जालिम हर वक़्त कुछ नया देता है