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बुधवार, 9 जुलाई 2008

तुम्हारी यादों सा आधा चाँद आज फिर आया है

लाया है साथ में कुछ बासी रातों के टूटे तारे और

कुछ रात-रानी के अध् खिले फूलों की जानी पहचानी खुशबू लाया है

सब कुछ वैसा ही है जैसा तुम छोड़ गए थे

छत की मुंडेर पे पड़े मेरे एहसास वैसी ही हैं

जैसा इन्हे तुम तोड़ गए थे

रुदाली सी सुर्ख हवा का रुदन

वैसा ही है पहर दर पहर

बीतें सालों में यहाँ कुछ भी नही बदला

तुम्हारी यादों को मैंने कुछ टूटी चूडियों के टुकडों में सहेजकर रख दिया है।

अब बस आधा एक चाँद है और टूटी कुछ चूडियां !!!