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सोमवार, 24 अगस्त 2009

अनकही

दर्द वो है जो दीवारों सा दिखायी नही देता
बादलों सा बरसता तो है झूम के
पर बारिशों सा सुनायी नही देता


दिल के दरख्तों में
मैंने सपनो के बीज बोए थे
गम की फसलों के सिवाय यहाँ
अब कुछ दिखायी नही देता

सोचता हूँ की मांगूं बादलों से
थोड़ा पानी अपनी आँखों के लिए
पर सुना है की अब बदल कोई भी
यूँ ही उधार नही देता

रात के अंधेरे में किसी
रौशनी को उम्मीद न समझो
जलने के लिए कोई तिनका
अपना जिस्म बार बार नही देता

रास्तों पे चलते कारवां को
यूँ ही मंजीलें नही मिलती
नसीब मंजिलों का भी तो
देखो जिन्हें कारवां
हरबार नही मिलता …..

अब क्या करें

दिल में है जस्बात तो अब क्या करें
बदले नही अपने हालात तो अब क्या करें

कैसें दे अब चिरागों को हम होंसला
हवाएं हो गई है बेबाक तो अब क्या करें

तुम बताओ की परदों के पीछे क्या है
तुम बस परदों से करते रहे बात तो अब क्या करें

चैन की नींद में मैंने कुछ सपने उगाये थे
फसलें बिक गई अपनी तों हातो हाथ तो अब क्या करें

चाँद बुझ के सो गया , तारें जमीन पे आ गए
जिंदगी चलती रही रातों रात तो अब क्या करें

मैं तेरी यादों को माय समझ के पी गया
बातों में बस बढ़ गई बात तो अब क्या करें

बुधवार, 19 अगस्त 2009

मेरे घर के कमरे में


मेरे घर के कमरे में बिखरे हैं ख्वाब कुछ

आओ मिल कर समेटे आज कुछ

दरियों के नीचे से सपनो की धूल निकाले

तकियों के गिलाफों से उष्णता के फूल निकाले

रोशनदानो से बाहर देखे आज कुछ

मेरे घर के कमरे में.......

यादों के पौधों को थोडी सी धुप दिखा दें

अलमारी को किताबों की तहजीब सिखा दें

टूटे कांच में देखे आईने की तरह आज कुछ

मेरे घर के कमरे में .......

कमरे के फर्श को नए विचारों से धोया जाए

इसका कोना कोना नई उम्मीदों से संजोया जाए

घर की चौखट पे रंगोली से लिखें आज कुछ

मेरे घर के कमरे में बिखरे हैं ख्वाब कुछ..

ओल्ड

यूँ गुजर रही जिंदगी उसका ही नाम लेकर

मैं आज भी बैठा हूँ महफिल में एक टूटा जाम लेकर

तुम सजाओगी कभी महफिल मेरी मजार पर

कफ़न में लेटा हूँ आज भी मैं तेरी महफिल के दाम लेकर