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शनिवार, 19 मार्च 2011

होली

ख्वाबों के कुछ चिथड़े
इस होली पे जला दिए
अरमानों के कुछ निशाँ थे,
इस्सी राख में दबा दिए
हाथ उठाकर आसमान के
कुछ रंगों को छु लिया
कुछ रंग बेरंग हो गए
कुछ दामन पे लगा लिए
तुम जो रंग बिखराते हो
वो रंग सारे कच्चे हैं
मैंने सारे पक्के रंग
अपने ऊपर लगा लिए
रंगों के इस खेल में
सारे रिश्ते रंग गए
मेरे दो चार ख़ास थे
तकिये के नीचे दबा दिए.
ख्वाबों के कुछ चिथड़े
इस होली में जला दिए