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मंगलवार, 21 जनवरी 2014

AAP se kuch kehna hai

२०११ में जब केजरीवाल जब मंच पर  खड़े हुए थे तब राजनीती के चेहरे पर भ्रष्टाचार के मुहासे का इलाज करने वाले स्पेशलिस्ट डॉक्टर कि तरह नज़र आये थे लेकिन अब लोकतंत्र के पटल पर अब वो खुद मुहासा बन गए है।  ईमानदारी के सर्टिफिकेशन का जो नेक्सस वो चला रहे थे उसका दरसल भांडा फूट गया है।  कांग्रेस ने चुनाव के बाद जो जाल बिछाया था उसमे केजरीवाल अब फंसते नज़र आ रहे है।  दिल्ली कि सियासत न उनसे निगली जा रही है न चबाते ही बन रही है।  वो एक सफेदपोश है जो अपनी गलती छुपाने के लिए दूसरे कि दाड़ी में तिनके निकाल रहे है।

शुरुआत से शुरू करे तो आम आदमी तक जाना पड़ेगा।   चुनावी वादा पहले खुद के लिए किया कि कोई मंत्री लाल बत्ती नहीं लगाए,गा महंगी कार में नहीं घूमेगा, सरकारी बंगला नहीं लेगा।  आप सचिवालय चले जाईयें वादा खिलाफी देख लीजिये।  मैं कुछ नहीं कहूंगा। जहाँ तक सरकारी बंगले ई बात है तो वादा निभाया गया है। शाब्दिक रूप से कम से कम वादा निभाया है। बंगले नहीं है लेकिन फ्लैट है और मेरी नज़र में बंगले से ज्यादा खूबसूरत है। केजरीवाल भी इस फ्लैट कि मोह माया में आ ही गए थे लेकिन फिर मीडिया चैनल्स ने उनकी वादे वाली क्लिपिंग्स दिखा दिखा कर उन्हें फ्लैट न लेने पर मजबूर कर दिया।   अजीब सी बात है जिस मीडिया ने उन्हें बनाया है अब वो ही उन्हें खींच रही है।  दरसल सच्चा विपक्ष मीडिया ही होता है।  

 केजरीवाल उवाच ऐसे छोटी छोटी बातों पे ध्यान देंगे तो फिर बड़ा उद्देश्य कैसे पूरा होगा।  गाड़ी ले ली कोई बात नीं।  घर ले लिए कोई बात नीं।  इसे वादा खिलाफी मन नहीं माना जायगा।  लेकिन सर सोमनाथ भारती देश के इतने बड़े सम्मानीय व वरिष्ठ वकील जिन्हे अपैक्स कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने सम्मानित किया है वो अगर जासूस बन कर दिल्ली कि सड़कों पर महिलाओं को रस्सी से बांधेंगे प्रताड़ित करेंगे तो फिर कैसे चलेगा। सोमनाथ जी गए थे छब्बे बनने और लौट कर आये अबे बन कर। पुलिस को काम सिखाना चाह रहे थे, दरसल मीडिया से पुलिस का स्टिंग करवाना चाहते थे लेकिन उलटे धरे गए।  फंस गए तो फिर केजरीवाल को मोर्चा सम्भालना पड़ा।  जैसे हार्डवेयर इंजीनियर हर यूजर को पहले कंप्यूटर ऑफ कर के ऑन करने के लिए कहता है उसी तरह केजरीवाल पहले धरने करते है फिर बात करते है, सो धरना शुरू हो गया।  जनता तो टोइंग है केजरीवाल कि जेब में है , एक आवाज़ पे अपना काम छोड़कर आ जायेगी।  लेकिन जनता तो सचिवालय से कब कि ऊब के जा चुकी है।  पहले सर्कार बनाये या नहीं फिर आपकी शपथ में खामा खा कि शपथ और फिर जनता दरबार में जनता बड़ी बेआबरू होकर निकली।  अब जनता बार बार थोड़ी न आएगी आपके वरगलाने में. आप सड़क पे सोये या अपने घर में जनता को अब फर्क नहीं है।  २६ जनवरी को छुट्टी है।  सुबह सरकारी ऑफिस में लड्डू मिलेंगे और टीवी पे परेड आएगी आप हमारा मजा ख़राब मत कीजिये।  अगर सचमुच में मुख्यमंत्री है तो बंद गले का सूट सिलवाने दाल दीजिये २६ जनवरी का मुख्यमंत्री का ड्रेस कोड है।  और मेहरबानी करेंगे तो टीवी पर भी २६ जनवरी को कोई गांधी जी कि पिक्चर देख लेंगे।

धन्यवाद्