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सोमवार, 16 मई 2016

उस  मकाँ  से अपने ख्वाब उठा लाया
वो गिरती हुई मंजिल से राज़ उठा लाया

वो बादल  निकले थे कहीं और जाने के लिए
उनके साथ ये एक और जाम उठा लाया

काफिलों को मिली न कभी मंजिले
ये जा जाकर मीलों के पत्थर उठा लाया

कहने  वालों ने उसे  कहा  सब  कुछ
वो  कुछ सुने  बिना ही आसमां उठा लाया

मैंने कई बार पूछना भी चाहा उससे
वो हरबार मेरी हसरतों का हिसाब उठा लाया


रविवार, 15 मई 2016

उम्रभर

याद कहाँ रहता है कोई उम्रभर 
जो आते हैं वही चले जाते है उम्रभर 

अब चंद मटर के दानो  के लिए 
राख कुरेदे क्या 
राख में ही तो दबाते रहे है उम्रभर   

कोई कहेगा तो सुनेंगे हम भी 
महफ़िल महफ़िल 
अपनी ही तो सुनाते रहे हैं उम्रभर 

तुम भी देखो तुम्हारे पास ही 
होंगी कुछ निशानियां 
मैं तो बस देता रहा हूँ यूँ ही उम्रभर 

कोई आवाज़  नहीं आती अब कहीं से
लौटकर यहाँ 
आवाज़ों के बाजार लगे थे जहाँ उम्रभर