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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

दिवाली की सफाई

दिवाली की सफाई में
जो खाली लिफाफे मिले थे
उनमे पुराने खत निकले है
उनमें कुछ उदासियाँ मिली है।
कुछ कुचले हुए एहसासों का
वजूद मिला है और सर्दियों
की एक अलसाई दोपहर मिली है।
कुछ अनकहीं नज़्में  मिली है
कुछ अध् लिखी ग़ज़लें मिली है।
कुछ इश्क़ के सौदे मिले हैं
और इश्क़ वाले ओहदे मिले है।
अश्कों का यूँ तो कोई
निशाँ मिला नहीं है लेकिन
सफहों पर कहीं-कहीं नमी मिली है।
कहीं बहुत अँधेरे मिले है और
कहीं-कहीं थोड़ी धूप खिली है।
एक वक़्त की खुशबु
आती है इन खतों से
शायद किसी ने बालिश्तों से
इन खतों पर अपना वक़्त नापा है।
इन लिफाफों पर कोई नाम तो नहीं है
लेकिन एक अधूरा सा एक पता है
बनारस का है शायद!!
यूँ तो वक़्त को रोक पाना
नामुमकिन है लेकिन
यूँ ही कुछ अटके हुए पल
मिल जाते हैं  दिवाली की सफाई में !!