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शनिवार, 8 मई 2010

नयी कवितायेँ उधार की !

पिछले पूरे साल से मैंने कुछ नहीं लिखा है। आप इससे आलस्य भी कह सकतें हैं और महानगर में रहने की व्यस्तता भी कह सकते हैं। मैंने अपने ब्लॉग को जीवीत रखने के लिए एक कदम उठाया है । मैं अपने पिताजी के ब्लॉग से कुछ कवितायेँ ली हैं और इन्हें अपने ब्लॉग पे प्रेषित कर रहा हूँ। आप इन कविताओं को उनके ब्लॉग पे भी पढ़ सकते हैं। http://hameshaaa.blogspot.com/


इस कदम से मेरा ब्लॉग भी जीवीत रहेगा और आप लोगो को नयी और उम्दा किस्म की कवितायेँ पढ़ने मिलेंगी। जब स्वयं कुछ लिखूंगा तो आपको लिखने के स्तर से ही पता चल जायेगा और मैं स्वयं इमानदारी से आप को बता भी दूंगा।
तब तक आप लोग इन स्तरीय कविताओं का आनंद उठाएं।


प्राचीन महल का वैभव खंडहर में बदल गया है
कभी तन के खड़ा था हिमालय
सा आज रेत के पर्वत सा बिखर गया
है उसकी इस दशा पर सभी तो मौन हैं
कुछ हमदर्दी दिखाएँ
साथ में दो आसूं बहायें
ऐसा इस अपनो की दुनिया में बताओ तो भला कौन है
मैं हमदर्दी हो सकता हूँ
थोड़ा साथ दे सकता हूँ
पर आंसू बहाने को मुझसे मत कहना
मेरे आंसूं सुख चुकें हैं
कुछ जमा है फिक्स डेपोसित में
ताकि अपनी ही मौत पर फूल न चढ़ा सकूं
बाज़ार से खरीदा कर
तो अपने आंसू तो बहा सकूं
हाँ, मेरा स्नेह नही हुआ समाप्त
तुम ले लो इसको
क्यूँ की चौराहे की हवा अब सहन नही होती
मेरी लौ होती है विचलित
होती है कम्पित
मेरा स्नेह अभी नही हुआ समाप्त
तुम ले लो इसको
तुमको करना है प्रकाशित
आतीत के वैभव को
मेरा क्या!मैं तो टोटके क़ा दीपक हूँ
मेरा बुझ जाना ही अच्छा!
लो! मैं बुझता हूँ।