Popular Posts

सोमवार, 19 फ़रवरी 2007

परछाइयाँ

बेजान दीवारों पर खामोश परछाइयाँ 
मेरे तन्हाई की साथी बनी है परछाइयाँ 

तन्हाई में हमें यूँ वक़्त का तकाज़ा ना रहा 
दीवारों पर आकर वक़्त बताती रही परछाइयाँ 

वक़्त के धोके  ने यूँ तो कई बार मिटाया हमको 
पर रात की साजिश से मिट गयी हैं परछाइयाँ

मुसाफिर हूँ, यूँ ही चला जाता हूँ, बिना किसी मंजिल के 

मंजिल मंजिल भटकती है मुसाफिरों की परछाइयाँ 

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

doosara.blogspot.com is very informative. The article is very professionally written. I enjoy reading doosara.blogspot.com every day.
toronto payday loan
payday loans online