बेजान दीवारों पर खामोश परछाइयाँ
मेरे तन्हाई की साथी बनी है परछाइयाँ
तन्हाई में हमें यूँ वक़्त का तकाज़ा ना रहा
दीवारों पर आकर वक़्त बताती रही परछाइयाँ
वक़्त के धोके ने यूँ तो कई बार मिटाया हमको
पर रात की साजिश से मिट गयी हैं परछाइयाँ
मुसाफिर हूँ, यूँ ही चला जाता हूँ, बिना किसी मंजिल के
मंजिल मंजिल भटकती है मुसाफिरों की परछाइयाँ
मेरे तन्हाई की साथी बनी है परछाइयाँ
तन्हाई में हमें यूँ वक़्त का तकाज़ा ना रहा
दीवारों पर आकर वक़्त बताती रही परछाइयाँ
वक़्त के धोके ने यूँ तो कई बार मिटाया हमको
पर रात की साजिश से मिट गयी हैं परछाइयाँ
मुसाफिर हूँ, यूँ ही चला जाता हूँ, बिना किसी मंजिल के
मंजिल मंजिल भटकती है मुसाफिरों की परछाइयाँ
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