Guzar gaya hai jo, kyun dil se jata nahi
Ret pe likhi kahaani ko, kyun samundar mitata nahi
Kai saal hue yahan se kashtiyan guzare
Ab to barsaat ka pani bhi yahan tik pata nahi
Siyasi khel main mere Mandir-Masjid lut gaye
Badi der hui Maalik, koi Paigambar bhi aata nahi.
Mere seene ke ghaav itane to gehree na the
Jane kya baat hai ki waqt bhi inhe bhar pata nahi
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