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बुधवार, 5 मार्च 2008

तारें बहुत हैं

मेरी ज़िंदगी में सुबह तो नही है
पर राह में चमकते तारें बहुत हैं

जो मिला दे उनसे वो राहे नही हैं
पर पगडंडियों पे मशालें बहुत हैं

मस्जिदों में कहीं खुदा तो नही हैं
पर मौलवी की अजाने बहुत हैं

सिर्फ़ मेरे घर में शायद बरसा हैं सावन
इस बिना छात के घर में दीवारें बहुत हैं।





1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

hiya


Just saying hello while I read through the posts


hopefully this is just what im looking for looks like i have a lot to read.