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बुधवार, 10 सितंबर 2008

सपने

बिक सकते तो बेंच देता
सपने तुम्हारे
मैं बाज़ार में
और फिर खरीद लाता
चन्द रोटी के टुकड़े
जो गिरते नही आस्मां से
आंसुओं को सुखा के
नमक कर लेता
अपने दर्द को पी के
मैं दम भर लेता
काश भुला सकता तो भुला देता
मैं जो ठगा गया
यहाँ सपनो के
बाज़ार में
जहाँ सपने खरीदे जा सकते हैं
पर बिक नही सकते
मैं तनहा सुखी नदी
के किनारे खड़ा
सोचता हूँ की
ये नदी बहती यदि
तो बहा देता सपने सारे
और चुका देता कीमत
धरातल के खुशियों की

बेनाम

वोह जो दिन हो उसे महफिल में बुलाया नही करते
हम शान से जीतें हैं गाया नहीं करते

यूँ तो होंगे कई फनकार तेरी महफिल में
हम यूँ ही अपना हुनर जाया नही करते


चाँद के पास ही रक्खा है दिल मेरा हुजुर
ऐसी बातों से ज़माने को बहलाया नही करते

मैंने कमरे में बिछाये हैं यादों के कई बिस्तर
यहाँ हर कसी को हम लिटाया नही करते

महफिल महफिल लोगों को हम गले लगाया करते हैं
उनकी बातों को मगर दिल से लगाया नही करते

बुधवार, 9 जुलाई 2008

तुम्हारी यादों सा आधा चाँद आज फिर आया है

लाया है साथ में कुछ बासी रातों के टूटे तारे और

कुछ रात-रानी के अध् खिले फूलों की जानी पहचानी खुशबू लाया है

सब कुछ वैसा ही है जैसा तुम छोड़ गए थे

छत की मुंडेर पे पड़े मेरे एहसास वैसी ही हैं

जैसा इन्हे तुम तोड़ गए थे

रुदाली सी सुर्ख हवा का रुदन

वैसा ही है पहर दर पहर

बीतें सालों में यहाँ कुछ भी नही बदला

तुम्हारी यादों को मैंने कुछ टूटी चूडियों के टुकडों में सहेजकर रख दिया है।

अब बस आधा एक चाँद है और टूटी कुछ चूडियां !!!

सोमवार, 21 अप्रैल 2008

उपहार

मेरे प्रियतम मुझे उपहार चाहिए
तुम्हारी साँसों से गुंथा जीवन का एक हार चाहिए

प्रेम भरे ये नयन तुम्हारे
इन नयनो का रस-बहार चाहिए

रंगो से भरी मेरी स्वप्न-शाला
मेरे इन सपनों को जीवन का आकार चाहिए

मेरे प्रियतम मुझे उपहार चाहिए

प्रवाह

ओ नदी तुम बहा करो

ओ नदी तुम बहा करो

कुछ बूंदों के सृजन से मिला है जीवन

तुम बूंदों के संग रहा करो , ओ नदी तुम.....

प्रवाह नियम है जीवन का

पथरीले रस्तों से ये कहा करो , ओ नदी तुम बहा करो

मेरा जीवन जड़ पेड़ की तरह

तुम मुझ से मिलती रहा करो , ओ नदी तुम

सोते जागते बहते रहना

जीवन का उद्देश्य तुम्हारा

जीवन की इस दौड़ में

तुम सबसे आगे रहा करो

ओ नदी तुम बहा करो.....

शनिवार, 12 अप्रैल 2008

जीवन की उष्णता


मेरे ख्यालों से होकर गुजर रहा है कोई

आजकल दिल में उतर रहा है कोई

कुछ जस्बातों को पंख मिल रहे हैं

जमीन पे पाँव हैं लेकिन बादलों के पार उड़ रहा है कोई

प्रेम की कल्पना अब रूप ले रही है

ठंडी सुर्ख हवाओं पे कविता कह रहा है कोई

नानी माँ की कहानी से उतर कर एक परी

दिन के उजाले में साफ दिखाई दे रही है

अकेले से इस कमरे में मेरे साथ रह रहा है कोई

जीवन की उष्णता के दिन शायद अब आ चुके हैं

अब रात भर मेरे गिलाफों पे चुम्बन रख रहा है कोई

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2008

स्वार्थी प्रेम


बहती हवाओं से सीखा है

उड़ती घटाओं से सीखा है

बरसते पानी से जाना है

झूमती बहारों ने माना है

की प्रेम सिर्फ़ कल्पना है

ये सच्चाई से परे है

अन्धकार है, धोखा है

ये असहज है,अनैतिक है

ये सिर्फ़ जोश है, जीवन का एक दोष है

शायद किसी की कल्पना है

जीवन के मूल्यों से जाना है

की इस जीवन का कोई मूल्य नही

सब रिश्ते नाते झूठे हैं

सब निरार्थ है, सब स्वार्थ है।

बुधवार, 5 मार्च 2008

तारें बहुत हैं

मेरी ज़िंदगी में सुबह तो नही है
पर राह में चमकते तारें बहुत हैं

जो मिला दे उनसे वो राहे नही हैं
पर पगडंडियों पे मशालें बहुत हैं

मस्जिदों में कहीं खुदा तो नही हैं
पर मौलवी की अजाने बहुत हैं

सिर्फ़ मेरे घर में शायद बरसा हैं सावन
इस बिना छात के घर में दीवारें बहुत हैं।