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मेरी ज़िंदगी में सुबह तो नही है पर राह में चमकते तारें बहुत हैं जो मिला दे उनसे वो राहे नही हैं पर पगडंडियों पे मशालें बहुत हैं मस्जिदों में ...
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अब किसके पास वक़्त है यहाँ अब कौन जनाजे में रोता है आज आफिस में काम बहुत है और एक दिन तो सबने मरना होता है ये तो इस कॉलोनी में रोज़ का...
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बेजान दीवारों पर खामोश परछाइयाँ मेरे तन्हाई की साथी बनी है परछाइयाँ तन्हाई में हमें यूँ वक़्त का तकाज़ा ना रहा दीवारों पर आकर वक़्त बता...
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बहती हवाओं से सीखा है उड़ती घटाओं से सीखा है बरसते पानी से जाना है झूमती बहारों ने माना है की प्रेम सिर्फ़ कल्पना है ये सच्चाई से परे है अन्...
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मेरे ख्वाहिशों के खतों पर पते गलत थे तुम जब तक मेरे साथ थे, मुझ से अलग थे मैंने कई बार खुदा बदलकर भी देखा तुमने जिनके सजदे किये वो सारे...
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बुझती आँखों को अब क्या ख्वाब दिखाना चाहिए? रात के मुसाफिर को अब घर आ जाना चाहिए !! खुश्क मौसम की सर्द रातें अब मुझको सताती हैं जो रात को उठ...
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जिस्म रूह पर ऐसे है पुरानी किताब पर जिल्द चढ़ी हो जैसे उम्र बढ़ रही है तो वो कोने जो अक्सर अलमारी से रगड़ खाते है छिल जाते हैं इस जिल...
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वक्त ज़ख्म, वक्त ही दवा देता है जिन्दा है जो उन्हें जीने कि सजा देता है झुलस रहे हैं सदियों से कई जिस्म जिन्दगी कि आग में बुझते शोलों को वक्त...
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मेरी यादों का नशा और भी गहराता गया जो याद भी नहीं था, वो सब याद आता गया ये यूँ हुआ, वो यूँ हुआ, की जो हुआ और नहीं हुआ वो सब भी याद आता ग...
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शहर बदल सकते हैं राज्य बदल सकते हैं प्यार करने वाले साम्राज्य बदल सकते हैं जब तक रहा मैं, जिन्दगी मेला रही जिंदा लोग जिंदगी का भाग्य बदल सकत...
बुधवार, 10 सितंबर 2008
सपने
सपने तुम्हारे
मैं बाज़ार में
और फिर खरीद लाता
चन्द रोटी के टुकड़े
जो गिरते नही आस्मां से
आंसुओं को सुखा के
नमक कर लेता
अपने दर्द को पी के
मैं दम भर लेता
काश भुला सकता तो भुला देता
मैं जो ठगा गया
यहाँ सपनो के
बाज़ार में
जहाँ सपने खरीदे जा सकते हैं
पर बिक नही सकते
मैं तनहा सुखी नदी
के किनारे खड़ा
सोचता हूँ की
ये नदी बहती यदि
तो बहा देता सपने सारे
और चुका देता कीमत
धरातल के खुशियों की
बेनाम
हम शान से जीतें हैं गाया नहीं करते
यूँ तो होंगे कई फनकार तेरी महफिल में
हम यूँ ही अपना हुनर जाया नही करते
चाँद के पास ही रक्खा है दिल मेरा हुजुर
ऐसी बातों से ज़माने को बहलाया नही करते
मैंने कमरे में बिछाये हैं यादों के कई बिस्तर
यहाँ हर कसी को हम लिटाया नही करते
महफिल महफिल लोगों को हम गले लगाया करते हैं
उनकी बातों को मगर दिल से लगाया नही करते
बुधवार, 9 जुलाई 2008
तुम्हारी यादों सा आधा चाँद आज फिर आया है
लाया है साथ में कुछ बासी रातों के टूटे तारे और
कुछ रात-रानी के अध् खिले फूलों की जानी पहचानी खुशबू लाया है
सब कुछ वैसा ही है जैसा तुम छोड़ गए थे
छत की मुंडेर पे पड़े मेरे एहसास वैसी ही हैं
जैसा इन्हे तुम तोड़ गए थे
रुदाली सी सुर्ख हवा का रुदन
वैसा ही है पहर दर पहर
बीतें सालों में यहाँ कुछ भी नही बदला
तुम्हारी यादों को मैंने कुछ टूटी चूडियों के टुकडों में सहेजकर रख दिया है।
अब बस आधा एक चाँद है और टूटी कुछ चूडियां !!!
सोमवार, 21 अप्रैल 2008
उपहार
तुम्हारी साँसों से गुंथा जीवन का एक हार चाहिए
प्रेम भरे ये नयन तुम्हारे
इन नयनो का रस-बहार चाहिए
रंगो से भरी मेरी स्वप्न-शाला
मेरे इन सपनों को जीवन का आकार चाहिए
मेरे प्रियतम मुझे उपहार चाहिए
प्रवाह
ओ नदी तुम बहा करो
ओ नदी तुम बहा करो
कुछ बूंदों के सृजन से मिला है जीवन
तुम बूंदों के संग रहा करो , ओ नदी तुम.....
प्रवाह नियम है जीवन का
पथरीले रस्तों से ये कहा करो , ओ नदी तुम बहा करो
मेरा जीवन जड़ पेड़ की तरह
तुम मुझ से मिलती रहा करो , ओ नदी तुम
सोते जागते बहते रहना
जीवन का उद्देश्य तुम्हारा
जीवन की इस दौड़ में
तुम सबसे आगे रहा करो
ओ नदी तुम बहा करो.....
शनिवार, 12 अप्रैल 2008
जीवन की उष्णता
मेरे ख्यालों से होकर गुजर रहा है कोई
आजकल दिल में उतर रहा है कोई
कुछ जस्बातों को पंख मिल रहे हैं
जमीन पे पाँव हैं लेकिन बादलों के पार उड़ रहा है कोई
प्रेम की कल्पना अब रूप ले रही है
ठंडी सुर्ख हवाओं पे कविता कह रहा है कोई
नानी माँ की कहानी से उतर कर एक परी
दिन के उजाले में साफ दिखाई दे रही है
अकेले से इस कमरे में मेरे साथ रह रहा है कोई
जीवन की उष्णता के दिन शायद अब आ चुके हैं
अब रात भर मेरे गिलाफों पे चुम्बन रख रहा है कोई
शुक्रवार, 4 अप्रैल 2008
स्वार्थी प्रेम
बहती हवाओं से सीखा है
उड़ती घटाओं से सीखा है
बरसते पानी से जाना है
झूमती बहारों ने माना है
की प्रेम सिर्फ़ कल्पना है
ये सच्चाई से परे है
अन्धकार है, धोखा है
ये असहज है,अनैतिक है
ये सिर्फ़ जोश है, जीवन का एक दोष है
शायद किसी की कल्पना है
जीवन के मूल्यों से जाना है
की इस जीवन का कोई मूल्य नही
सब रिश्ते नाते झूठे हैं
सब निरार्थ है, सब स्वार्थ है।
बुधवार, 5 मार्च 2008
तारें बहुत हैं
पर राह में चमकते तारें बहुत हैं
जो मिला दे उनसे वो राहे नही हैं
पर पगडंडियों पे मशालें बहुत हैं
मस्जिदों में कहीं खुदा तो नही हैं
पर मौलवी की अजाने बहुत हैं
सिर्फ़ मेरे घर में शायद बरसा हैं सावन
इस बिना छात के घर में दीवारें बहुत हैं।