बिक सकते तो बेंच देता
सपने तुम्हारे
मैं बाज़ार में
और फिर खरीद लाता
चन्द रोटी के टुकड़े
जो गिरते नही आस्मां से
आंसुओं को सुखा के
नमक कर लेता
अपने दर्द को पी के
मैं दम भर लेता
काश भुला सकता तो भुला देता
मैं जो ठगा गया
यहाँ सपनो के
बाज़ार में
जहाँ सपने खरीदे जा सकते हैं
पर बिक नही सकते
मैं तनहा सुखी नदी
के किनारे खड़ा
सोचता हूँ की
ये नदी बहती यदि
तो बहा देता सपने सारे
और चुका देता कीमत
धरातल के खुशियों की
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2 टिप्पणियां:
really amazing. i am surprised to see such a nice poem. keep it up dear.
fine yaar sapne nice one...
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