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रविवार, 31 जनवरी 2016

सपने

मुझे मेरे सपने अब मिला नहीं करते
कई मौसम बदले मेरे शहर के लेकिन
फूल वो दिलों वाले अब खिला नहीं करते

पत्थर हो गए इंसा सब के सब
अब यहाँ ईद पर गले मिला नहीं करते

बच्चों सी है बातें इनकी
इनकी बातों का अब हम गिला नहीं करते

तार तार  हो गया है जिस्म छिल कर
जख्म कोई भी हो अब हम सिला नहीं करते।

शनिवार, 30 जनवरी 2016

तुम्हारे शहर मैं

मुझे छुपकर पढ़ने वाले
तेरे सीने के लफ्ज़ मैंने
सब सफ़ेद कागजो पर
ज्यों के त्यों उतारे है।
लिखी है तेरी चूड़ियों
की खनक और तेरी
बालियों की चमक
भी लिखी है मैंने
समुन्दर किनारे की
हवा में उड़ती तेरी
ज़ुल्फ़ों की महक
भी लिखी है मैंने
कई बार कई सफ़हे
खाली रख दिए यूँ ही
तू मिलेगा कभी तो
पूछूंगा कि कैसे गुजारे
कई साल मेरे बिन तूने
फिर उन खाली सफ़होँ
पर तुम्हारा खालीपन
भी लिखूंगा शायद
मैं जानता हूँ कि तू भी
कहीं लिखता रहता होगा
मेरे सीने की बुझी आग
और मेरे खालीपन की
कोई कहानी भी कहीं
लिख रखी होगी तूने
गर कभी मिले हम
तो बता देना की
खाली सफ़होँ का
मोल क्या होता है
तुम्हारे शहर  में

सोमवार, 25 जनवरी 2016

मेरे अंदर कौन है

मेरे अंदर कौन है बाहर कौन
मुझे जाना कहाँ है अब ये बतलाये कौन

शराबों के कई दौर यूँ ही ज़ाया हो गए
बात वो पते की अब सबको बतलाये कौन

वो गाँव सब के सब अब शहर हो गए
पर नींद वो गावों की अब शहरों में उगाये कौन

कल मयकदों से निकलकर  सब खुदा हो गए
दीवार ओ दर मस्जिदों की देखने अब रोज़ रोज़ जाये कौन

दोस्त तुमसे दोस्ती मेरी वैसी ही है गहरी
पर कौन जाए रोज़ मिलने किसी से
और रोज़ किसी को फ़ोन लगाये कौन।

मेरे अंदर कौन है बाहर कौन
मुझे जाना कहाँ है अब ये बतलाये कौन

अंशुमान