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शनिवार, 30 जनवरी 2016

तुम्हारे शहर मैं

मुझे छुपकर पढ़ने वाले
तेरे सीने के लफ्ज़ मैंने
सब सफ़ेद कागजो पर
ज्यों के त्यों उतारे है।
लिखी है तेरी चूड़ियों
की खनक और तेरी
बालियों की चमक
भी लिखी है मैंने
समुन्दर किनारे की
हवा में उड़ती तेरी
ज़ुल्फ़ों की महक
भी लिखी है मैंने
कई बार कई सफ़हे
खाली रख दिए यूँ ही
तू मिलेगा कभी तो
पूछूंगा कि कैसे गुजारे
कई साल मेरे बिन तूने
फिर उन खाली सफ़होँ
पर तुम्हारा खालीपन
भी लिखूंगा शायद
मैं जानता हूँ कि तू भी
कहीं लिखता रहता होगा
मेरे सीने की बुझी आग
और मेरे खालीपन की
कोई कहानी भी कहीं
लिख रखी होगी तूने
गर कभी मिले हम
तो बता देना की
खाली सफ़होँ का
मोल क्या होता है
तुम्हारे शहर  में

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