मेरी यादों का नशा और भी गहराता गया
जो याद भी नहीं था, वो सब याद आता गया
ये यूँ हुआ, वो यूँ हुआ, की जो हुआ
और नहीं हुआ वो सब भी याद आता गया
वो अचानक सी बारिश, वो सड़क, वो पेड़
और सब कुछ, जो भी था, याद आता गया
तुम्हारी खुशबू में बसे कुछ लम्हात
अब भी ताज़े हैं
उस दिन के बारिश की तरह
और पहले प्यार का ताजापन याद आता गया
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बुधवार, 28 जुलाई 2010
रविवार, 4 जुलाई 2010
वक़्त
बिखर गया है वो ताश के पत्तों सा मेरे आगे
कल जो खुद को खुदा कहता था
वो जोड़ रहा है अपने मुकद्दर की तस्वीरें
जिसके हाथों में कभी मेरा मुकद्दर रहता था
वक़्त है , वक़्त है और सिर्फ वक़्त है
कहते है की पहले वक़्त भी उसी के हाथों में रहता था
गुरुवार, 1 जुलाई 2010
तुम्हे आ जाना चाहिए
बुझती आँखों को अब क्या ख्वाब दिखाना चाहिए?
रात के मुसाफिर को अब घर आ जाना चाहिए !!
खुश्क मौसम की सर्द रातें अब मुझको सताती हैं
जो रात को उठकर लिखते थे
वो ख़त अब जलाना चाहिए !!
पहर दर पहर मैं देता रहा तुम को आवाजें
उन आवाजों को अब तो
लौट के आ जाना चाहिए !!
मेरे ख्वाबों की चाँद लाशें सड़ रहीं हैं आज भी
इन की चिता को आग लगाने
तुम्हे अब आ जाना चाहिए !!
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