Popular Posts

सोमवार, 14 अप्रैल 2014

ख्वाब

मस्तक पटल से यादों की धुंध साफ़ नहीं करता 
मैं अब भी पश्मीने की मुंडेर पे रहता हूँ 
बहते कोहरे में चाँद को देखना शौक अब भी है मेरा मेरा 
मैं अब भी सर्द रातों में सुखी नज़्में जलाता रहता हूँ 
कोई गिला, शिकवा, शिकायते गायी न गयी 
ये अभी अच्छा ही हुआ कि
 कोई वादा, वफ़ा, कसम निभायी न गयी 
सूखे पत्तों की तरह अपने ही पेड़ की शाखों के 
निचे बिखरता रहता हूँ 
मैं वक़्त को तेह कर के उम्र की दराजों में 
रखता रहता हूँ 
ये वक़्त मेरी उम्र की तहों में सिक कर 
जब तजुर्बा बन जायेगा 
मैं इस पश्मीने की मुंडेर से उठ जाऊंगा 
और उस चाँद के पास जाकर बैठूंगा 
ऐसे ही कुछ ख्वाब है जिन्हे 
अक्सर कागजो पे लिखते रहता हूँ  मैं