ख्वाबों के कुछ चिथड़े
इस होली पे जला दिए
अरमानों के कुछ निशाँ थे,
इस्सी राख में दबा दिए
हाथ उठाकर आसमान के
कुछ रंगों को छु लिया
कुछ रंग बेरंग हो गए
कुछ दामन पे लगा लिए
तुम जो रंग बिखराते हो
वो रंग सारे कच्चे हैं
मैंने सारे पक्के रंग
अपने ऊपर लगा लिए
रंगों के इस खेल में
सारे रिश्ते रंग गए
मेरे दो चार ख़ास थे
तकिये के नीचे दबा दिए.
ख्वाबों के कुछ चिथड़े
इस होली में जला दिए
2 टिप्पणियां:
एक वाक्या...
एक सूखते तालाब की चटकती मिटटी के पास..
एक चुल्लू पानी में तडपता मछली का बच्चा..
हमारी ऊँची ऊँची तालीमों -डिग्रियों के मुंह पर..
आसमान से गिरती बिजली की तरह कड़कता तमाचा ही तो है ..
ऐसा तमाचा रोज़ खाते हैं ..
फिर आँख मूँद कर चल पड़ते है..
ऑफिस के लिए देर हो रही है सोचते हुए..
कोट ,बुशर्ट- पतलून और उसके खीसे में ठसे पर्स में बिलबिलाते रिश्वत के रूपये ..
चमचमाते चेहरों के भीतर पिलपिला जमीर..
अब ये केवल एक वाक्या ..
एक हालात बस नहीं है
आदमजात के लिए आक्सफोर्ड डिक्सनरी में ताजा परिभाषा यही..
ताजा परिभाषा यही है..
गौतम
wah wah wah.. ye to aaj saamne aaya..
Rajeev
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