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बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

अच्छा होगा

आँखों से बहो और दिल से निकल जाओ तुम तो अच्छा होगा 
रहो मेरी तन्हाई से दूर और मुझे ना याद आओ तुम तो अच्छा होगा 

अच्छा होगा तुम्हारा ना मिलना मुझसे हमेशा के लिये 
मेरे कमरे से अपनी यादें समेट जाओ तुम तो अच्छा होगा 

मेरी आँखों को अब रोशनी की आदत भी नहीं 
मेरी अंखों के आईनो से अपना अक्स ले जाओ तुम तो अच्छा होगा 

कोई बहाना नहीं है

तुमसे बात करने का अब कोई बहाना नहीं है
और ब्लॅंक कॉल करने का अब ज़माना नहीं है

दिन के जुगनू रातों को आवारा से फिरते लेकिन 
ना दिन को फुरसत है और रातों का भी अब ठिकाना नहीं है 

एक अर्सा हुआ यारों की मेहफिलों का चाँद हुए 
सब्जी मॅंडी से आगे अब अपना आना जाना नहीं है 

तेरे खत और तस्वीर तेरी फाड़ दी थी उसी दिन 
सोना है सुकून से, अब बीवी से कुछ छुपाना नहीं है 

मेहफ़ूस रखना अपने दिल के किसी कोने में तुम मुझको 
सच्चे आशिक़ है हम, तुम्हारे बच्चों के मामा नहीं है 





भीड़

तुम केवल एक भीड़ हो 
एक चिल्लाने वाली भीड़ का हिस्सा हो
तुम केवल चिल्ला सकते हो 
दात भीच सकते हो 
तुम एक निराशक भीड़ हो
तुहारा अपना कुछ नहीं 
जो है सब भीड़ है
चिल्लाते हो उनके खिलाफ 
जो तुम्हारी भीड़ ने चुने थे कभी
तुम्हारा वज़ूद भीड़ है 
और आधार भी भीड़ है
अकेले तो तुम इतने सालों से 
कहीं किसी बियाबान में 
उन्ही की भीड़ का हिस्सा थे 
जो कहानी तुम अब बता रहे हो समाज को
उसी कहानी का तुम भी एक किस्सा थे 
वज़ीर से शह पाकर प्यादों ने भी 
सीख लिया है अब हर चाल चलना 
ये भीड़ का रूख है अभी 
और आगे  फिर तुम्ही को है सम्हलना 
खुद अपनी ही सीमाये बना ली है तुमने 
अब अवसरवादी भीड़ भी बना ली है तुमने
तुम एक पढ़े लिखे इंसान हो
जवान हो या किसान हो 
थोड़ा सम्हलो और अपने अंतर्मन में झाको 
इस भीड़ को और भीड़ मत बनाओ तुम
बड़ी मुश्क़िल से साठ सालों में इस भीड़ में
इंसानी समाज की खूबियाँ देखी है 
पतन भी देखा और तरक्की भी देखी है  
तुम्हारा म्हातवाकांशी होना बुरा नहीं
बुरा है उस पर भीड़ की शक्ति का तंदूर बनाना 
और बुरा है उस तंदूर पर सत्ता की रोटी सेकना!!!