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सोमवार, 26 मई 2014

ओल्ड ऐज होम

असंख्य झुर्रियों से
जरा सा ऊपर
दो कैटरेक्ट वाली आँखें
अब किसी का
इंतज़ार नहीं करती
ना कोई आया कभी
यहाँ न कोई आएगा
अपनो का खौफ
अब इतना है
कि अकेलापन
अब क्या रुलाएगा

अतीत के गौरवशाली
दिन मन के किसी कोने में
दुबक कर बैठ गए है
किसी को बताऊँ तो सही
पर वक़्त पे अपना नाम
भी याद नहीं आता
बच्चों के नाम याद है
रोज़ पेपर के पीले
पन्नो  पर  छपते है
पर शर्मसारी की
वजह से किसी को
नहीं बताता

मैं पोस्ट ऑफिस
में बाबू था
रबर की चप्पल में
अर्धशतकीय धागे डालकर
बच्चो को  अंग्रेजी
जूते  पहनता था
बच्चों को कॉलेज में
नए कपडे नसीब हो
तो सालों साल
वो बड़े चेक की
शर्ट चलाता था

जब बड़े को
बड़े कॉलेज में
दाखिला लेना था
तो उसकी माँ ने झट से
उतारकर अपने कंगन दे दिए थे
मैंने भी दो चार दोस्तों से
कुछ पैसे उधार ले लिए थे
वक़्त बीता तो माँ ने अपने
हाथों को कांच के कंगन से
ढक लिया था
मैंने भी दोस्तों का पैसा वापस
उनके सामने रख दिया था

जब छोटे की बारी आयी
तो माँ के पास कंगन नहीं थे
मैं रिटायरमेन्ट के पास था
दोस्तों ने हाथ खड़े कर दिए
वो भी अपनी जगह सही थे
इससे पहले की वो सोचे
अपने मंगलसूत्र के बारे में
मैं निकल लूंगा पीएफ अपना
समझाया मैंने उसे इशारे में
बच्चे ही अपनी संपत्ति है
बच्चे ही सच्चा धन है
बच्चों को अगर पढ़ा  भी
न पाये तो फिर क्या जीवन है

पढ़ लिखकर बच्चे बड़े हो गए
अपने पैरों पर दोनों खड़े हो गए
हम भी दिन में छाती पर
अख़बार रख कर सो जाते थे
कैसे बड़ा किया बच्चों को
सबको  गर्व से सुनाते थे

बच्चे बड़े हो गए
समझदार हो गए
बड़े शहरो के
कंक्रीट के जंगलों में
कहीं खो गए

पहले पैसे आते रहे
फिर केवल खत आने लगे
दिन में देखे सपनो के बादल
बिन बरसे ही जाने लगे
एक दिन
आंसुओं का सैलाब
ऐसा आया कि
किराये का घर था
वो बह गया
माँ के पास कुछ था नहीं
मेरे पास भी बस
तजुर्बा ही रह गया

अब तो यही आशियाना है
अब बस यहीं बसर होगी

बचे कुचे दिन बस सांस
लेने  में यहीं कटेंगे
अपनी अपनी मटकी
ले  आये हैं
हम दोनों अब
यहीं मरेंगे

सुबह शाम यहाँ सब्ज़ी देने
मख़्दूम आता है
कुछ देर बात कर लेता है
तो दिल बहल जाता है
कल कहता था कि
जल्दी जाना है
घर पर अंधी माँ
के लिए खाना बनाना है

अंधी माँ का खाना?
हाँ, बाबूजी !
गरीब के पास केवल तन होता है
और माँ बाप ही जीवन का
असली धन होता है

दांत भींचकर मैंने
सोच लिया कि
आंसुओं को बहने का
अब कोई बहाना न दूंगा
मर कर राख भी हो जाऊं
तो फिर राख भी बच्चों को
हाथ लगाने न दूंगा












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