बडे शान से सजायीं हैं ये महफ़िलें मैंने
तुम इनमे आओ कभी तो रंगो को पहचान मिले
नदी बन के तुम आओ या समुन्दर ओढ़ के आओ
बस फिर से तुम आओ कभी तो दिल को कुछ आराम मिले
एक बार फिर आओ कि कुछ उम्मीदें अभी बाकी हैं
आकर दो शब्द कह जाओ कि इस कहानी को अंजाम मिले
महफिलों का सूनापन धीरे धीरे समेटेंगे
आकर तुम महफिल जला जाओ तो पानी को भी कुछ काम मिले
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सोमवार, 16 जुलाई 2007
शुक्रवार, 13 जुलाई 2007
महफिल सजाये रखना
जिन्दगी कि महफिलें यूं ही सजाये रखना
उम्र भर ग़मों को सीने में छुपाये रखना
ना जाने कब आ जाये मौत तुम्हे नींद में
शहर में चार लोगों से बनाए रखना
अँधेरे का दौर है, दिन भी यहाँ काले हैं
एक दीप तुम भी अपनी चौखट पे जलाये रखना
ना जाने कब आ जाये मौसम बरसात का
झूलें तुम नीम पे हर वक़्त सजाये रखना
बे वक़्त की हसीं होटों पे अच्छी नही लगती
कुछ आंसू भी अपने पलकों में हमेशा दबाये रखना
जिंदगी कि महफिलें यूं ही सजाये रखना
उम्र भर ग़मों को सीने में छुपाये रखना
ना जाने कब आ जाये मौत तुम्हे नींद में
शहर में चार लोगों से बनाए रखना
अँधेरे का दौर है, दिन भी यहाँ काले हैं
एक दीप तुम भी अपनी चौखट पे जलाये रखना
ना जाने कब आ जाये मौसम बरसात का
झूलें तुम नीम पे हर वक़्त सजाये रखना
बे वक़्त की हसीं होटों पे अच्छी नही लगती
कुछ आंसू भी अपने पलकों में हमेशा दबाये रखना
जिंदगी कि महफिलें यूं ही सजाये रखना
बुधवार, 11 जुलाई 2007
तुम नही
तुम मेरी नही ये गम नही
तुम हो कहीँ ये काफी है
जीं रहा हूँ इस तरह
कि तेरे निशाँ बाक़ी हैं
तेरा ख़याल दिल से जाते जाते जाएगा
याद करने के लिए इक उम्र अभी बाकी है
ग़मों से मेरा अपना एक समझौता है
घर से दूर मस्जिद है
मस्जिद मे एक साकी है
तुम हो कहीँ ये काफी है
जीं रहा हूँ इस तरह
कि तेरे निशाँ बाक़ी हैं
तेरा ख़याल दिल से जाते जाते जाएगा
याद करने के लिए इक उम्र अभी बाकी है
ग़मों से मेरा अपना एक समझौता है
घर से दूर मस्जिद है
मस्जिद मे एक साकी है
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