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शुक्रवार, 13 जुलाई 2007

महफिल सजाये रखना

जिन्दगी कि महफिलें यूं ही सजाये रखना
उम्र भर ग़मों को सीने में छुपाये रखना

ना जाने कब आ जाये मौत तुम्हे नींद में
शहर में चार लोगों से बनाए रखना

अँधेरे का दौर है, दिन भी यहाँ काले हैं
एक दीप तुम भी अपनी चौखट पे जलाये रखना

ना जाने कब आ जाये मौसम बरसात का
झूलें तुम नीम पे हर वक़्त सजाये रखना

बे वक़्त की हसीं होटों पे अच्छी नही लगती
कुछ आंसू भी अपने पलकों में हमेशा दबाये रखना

जिंदगी कि महफिलें यूं ही सजाये रखना

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