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बुधवार, 11 जुलाई 2007

तुम नही

तुम मेरी नही ये गम नही
तुम हो कहीँ ये काफी है
जीं रहा हूँ इस तरह
कि तेरे निशाँ बाक़ी हैं
तेरा ख़याल दिल से जाते जाते जाएगा
याद करने के लिए इक उम्र अभी बाकी है
ग़मों से मेरा अपना एक समझौता है
घर से दूर मस्जिद है
मस्जिद मे एक साकी है

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