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सोमवार, 16 जुलाई 2007

एक बार फिर से आओ

बडे शान से सजायीं हैं ये महफ़िलें मैंने
तुम इनमे आओ कभी तो रंगो को पहचान मिले

नदी बन के तुम आओ या समुन्दर ओढ़ के आओ
बस फिर से तुम आओ कभी तो दिल को कुछ आराम मिले

एक बार फिर आओ कि कुछ उम्मीदें अभी बाकी हैं
आकर दो शब्द कह जाओ कि इस कहानी को अंजाम मिले

महफिलों का सूनापन धीरे धीरे समेटेंगे
आकर तुम महफिल जला जाओ तो पानी को भी कुछ काम मिले

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