Popular Posts

रविवार, 3 अप्रैल 2016

वक़्त

उँगलियों से गिरती
वक़्त की बूंदों को
कलम की स्याही
में लिपटाकर मैं,
अक्सर सफहों में
जप्त कर लेता हूँ ।
मैंने कई बार
यूँ ही पागलपन में
तुमको भी जप्त
करना चाहा था
वो सफहों पे जहाँ
स्याही फैली है न
वही तुम्हारे निशाँ है
मेरी डायरी के कुछ
पन्ने कटे फटे है वहाँ
ऐसा लगता है कोई
भागा हैं यहाँ से
पुराना वक़्त साथ लिये।

कोई टिप्पणी नहीं: