उँगलियों से गिरती
वक़्त की बूंदों को
कलम की स्याही
में लिपटाकर मैं,
अक्सर सफहों में
जप्त कर लेता हूँ ।
वक़्त की बूंदों को
कलम की स्याही
में लिपटाकर मैं,
अक्सर सफहों में
जप्त कर लेता हूँ ।
मैंने कई बार
यूँ ही पागलपन में
तुमको भी जप्त
करना चाहा था
वो सफहों पे जहाँ
स्याही फैली है न
वही तुम्हारे निशाँ है
मेरी डायरी के कुछ
पन्ने कटे फटे है वहाँ
ऐसा लगता है कोई
भागा हैं यहाँ से
पुराना वक़्त साथ लिये।
यूँ ही पागलपन में
तुमको भी जप्त
करना चाहा था
वो सफहों पे जहाँ
स्याही फैली है न
वही तुम्हारे निशाँ है
मेरी डायरी के कुछ
पन्ने कटे फटे है वहाँ
ऐसा लगता है कोई
भागा हैं यहाँ से
पुराना वक़्त साथ लिये।
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