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रविवार, 3 अप्रैल 2016

सहमी सहमी सी मेरी ख्वाइशें जैसे
पूस की रात में भीगा हुआ गरीब कोई
दिल की तलहटी में चीखते दर्द के सन्नाटे
जैसे दुश्शासन के सामने द्रोपदी खड़ी कोई
बहुत खौफनाक मंजर है आज की रात का
आज की रात आँखे बंद कर के सो जाते हैं
तुम आज रात तुम ही रहो
हम आज रात तुम हो जाते है

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