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रविवार, 15 मई 2016

उम्रभर

याद कहाँ रहता है कोई उम्रभर 
जो आते हैं वही चले जाते है उम्रभर 

अब चंद मटर के दानो  के लिए 
राख कुरेदे क्या 
राख में ही तो दबाते रहे है उम्रभर   

कोई कहेगा तो सुनेंगे हम भी 
महफ़िल महफ़िल 
अपनी ही तो सुनाते रहे हैं उम्रभर 

तुम भी देखो तुम्हारे पास ही 
होंगी कुछ निशानियां 
मैं तो बस देता रहा हूँ यूँ ही उम्रभर 

कोई आवाज़  नहीं आती अब कहीं से
लौटकर यहाँ 
आवाज़ों के बाजार लगे थे जहाँ उम्रभर 


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