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सोमवार, 16 मई 2016

उस  मकाँ  से अपने ख्वाब उठा लाया
वो गिरती हुई मंजिल से राज़ उठा लाया

वो बादल  निकले थे कहीं और जाने के लिए
उनके साथ ये एक और जाम उठा लाया

काफिलों को मिली न कभी मंजिले
ये जा जाकर मीलों के पत्थर उठा लाया

कहने  वालों ने उसे  कहा  सब  कुछ
वो  कुछ सुने  बिना ही आसमां उठा लाया

मैंने कई बार पूछना भी चाहा उससे
वो हरबार मेरी हसरतों का हिसाब उठा लाया


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