दर्द वो है जो दीवारों सा दिखायी नही देता
बादलों सा बरसता तो है झूम के
पर बारिशों सा सुनायी नही देता
दिल के दरख्तों में
मैंने सपनो के बीज बोए थे
गम की फसलों के सिवाय यहाँ
अब कुछ दिखायी नही देता
सोचता हूँ की मांगूं बादलों से
थोड़ा पानी अपनी आँखों के लिए
पर सुना है की अब बदल कोई भी
यूँ ही उधार नही देता
रात के अंधेरे में किसी
रौशनी को उम्मीद न समझो
जलने के लिए कोई तिनका
अपना जिस्म बार बार नही देता
रास्तों पे चलते कारवां को
यूँ ही मंजीलें नही मिलती
नसीब मंजिलों का भी तो
देखो जिन्हें कारवां
हरबार नही मिलता …..