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सोमवार, 24 अगस्त 2009

अब क्या करें

दिल में है जस्बात तो अब क्या करें
बदले नही अपने हालात तो अब क्या करें

कैसें दे अब चिरागों को हम होंसला
हवाएं हो गई है बेबाक तो अब क्या करें

तुम बताओ की परदों के पीछे क्या है
तुम बस परदों से करते रहे बात तो अब क्या करें

चैन की नींद में मैंने कुछ सपने उगाये थे
फसलें बिक गई अपनी तों हातो हाथ तो अब क्या करें

चाँद बुझ के सो गया , तारें जमीन पे आ गए
जिंदगी चलती रही रातों रात तो अब क्या करें

मैं तेरी यादों को माय समझ के पी गया
बातों में बस बढ़ गई बात तो अब क्या करें