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बुधवार, 10 अप्रैल 2013

अधजले दिये

रात के अधजले दीयों, तुम्हे क्या नींद में ही मौत आ गयी
सुबह का सूर्य भी न तुम देख सके, क्या तुम्हारी आग ही तुमको खा गयी

शेष था तुम्हारा इंधन सुबह की ओंस में भीगा हुआ
थे वो रात के मुसाफिर या सुर्ख हवा तुम्हे बुझा गयी

मैं तो देर तक जागा  रहा की मौत तुम्हारी देख लूँ
पर अँधेरी सर्द रात में मुझको भी नींद आ गयी


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