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बुधवार, 24 अप्रैल 2013

खफा

बही हुई  ज़िन्दगी को थामकर
गुज़रे हुए पलों को बांधकर
रोज़ थोडा जीने का सामान
तुम्हारे पुराने खतों से निकालता हूँ
तुम्हारे साथ ही तो जी रहा हूँ
यही सोचकर सारे अरमान निकालता हूँ
रात के दूसरे पहर जब चाँद को देखता हूँ
तुम भी  कहीं देखती होगी इसे
सफ़ेद चादरों पे पड़ा यही सोचता हूँ
अच्छा हुआ की कोई कसम , वादा ,वफ़ा
निभाई न गयी
खुदा ने बनाया तुमको
पर तुम मेरे लिए बनायीं न गयी
सुबह के बुझते दिये
अपनी जली हुई बाती का
मुझसे हिसाब माँगते है
मैं तुमसे सवाल पूछता हूँ
वो मुझसे जवाब मांगते हैं
मेरे ख्यालों से होकर गुज़रने वाले
तेरा सफ़र ही मेरी ज़िन्दगी का
फलसफा है
कल मैं तुझसे खफा था
आज तू मुझसे खफा है

खफा 

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Jindagi ka dastur hai yeh... Nice line " कल मैं तुझसे खफा था
आज तू मुझसे खफा है"..