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बुधवार, 10 अप्रैल 2013

गढ़करी

जब से मेरे दुश्मन मेरा दर्द बन गए
खाकर  "हकीमो" की दवा हम भी मर्द बन गए

बदनामी के चूहे मेरा नसीब कुतर गए
चढ़ के हम भी शौहरत की सीढ़ी निचे उतर गए

कुछ सीखा था हमने भी दो चार पैसे छापना
छपते छपते मशीनों  के पहिये उतर गए

मेरे पैसे के बाग को दीमक सी लग गयी
आस्तीन के साँप सारे बागों में भर गए

चाकर मेरे घर के सारे, अफसरी कर गए
गढ़ को लूट कर मेरे, मुझे गढ़करी कर गए

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