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सोमवार, 24 जून 2013

सिगरेट

सर्द हवाओं में उड़ती 
मेरे सिगरेट की  चिंगारियाँ 
अक्सर मुझ से ही 
उलझ जाया करती है 
मांगती है हिसाब कभी मेरी 
साँसों का और कभी 
मेरी सांस ही बन 
जाया करती है 

पुराने अखबार सा 
बिछाया था तुमने
मुझको अपने जीवन में 
ये चिंगारियां अब  अक्सर 
उस अखबार को 
जलाया करती है 

ये तारीखों की 
फितरत है की वो 
रोज़ बदल जाया करती है   
मेरी सारी चेतना अब 
तुमको केलिन्डर सा 
पाया करती है 

माचिस की डब्बी 
पे बने गुलाब से 
दिल को बहलाना और 
खुलते ही डिब्बी 
माचिस की तीलियाँ 
मेरी सिगरेट जलाया करती है 


1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Very Nice one.. Emotional !!