Popular Posts

सोमवार, 16 अप्रैल 2007

कहीं दूर देखो शाम Jal रही है

धुआं उठ रह है पिघलते अफताब के साथ
कहीं दूर देखो शाम जल रही है

सुरूर -ए -तप -ए गम के मौसम भी मुरझाने लगे
पिछले कुछ दिनों से अपनी तबियत मचल रही है

तेरे अहद -ए -तरब * आज भी है मुझको याद
हर जगह तेरे कर -ए -वफ़ा * कि बात चल रही है

ख़याल -ए -रोज़ -ए -जज़ा * ने आकर मुझको डरा दिया
उम्र आजकल कुछ जल्दी ढल रही है

कहीं दूर देखो शाम Jal रही है

..

कोई टिप्पणी नहीं: