Kai dino se tum bahut yaad aa rahi ho
Jaa chuki ho kab ki par ab bhi roz aa rahi ho.
Barasaa nahi kabhi saawan ka pehla pani, jaisaa us din barsaa tha
Garjaa nahi kabhi saawan ka badal jaisaa us din garja tha
Saawan ke Mahine mein tum Malhaar gaa rahi ho
Tumhare daur se hum thoda aage nikal aaye
Pichali purani yadon ko wahin chod aaye
Par saans leta hoon to lagata hai jaisee us daur ki khushbu aa rahi ho
Wo Do Kadam jo mujhko chalne the
Aaj bhi nahi chal payaa hoon
Mere do kadmo se chalkar Jaisee tum tak koi raah aa rahi ho..
Kai dino se tum bahut Yaad aa rahi ho…
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1 टिप्पणी:
Woh do kadam hi mushkil kyu hai chalna .. jis se shayad manjil hi mil jaye...
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